प्रत्येक ऋतु की जलवायु भिन्न-भिन्न होने से शरीर पर उसका भिन्न-भिन्न असर होता है इसलिए ऋतु के अनुसार आहार में भी आवश्यक परिवर्तन करना
चाहिए |
ऐसा करने से ऋतु की ठंडी गर्मी या अन्य असर सहन करने और उनका प्रतिकार करने की शारीरिक शक्ति बनी रहेगी |
ठंडी की ऋतु में जठराग्नि प्रदीप्त होती है अतः आहार के रूप में मधुर तथा स्निग्ध पदार्थों का सेवन करना
चाहिए |
शक्ति का संचार करने हेतु शीतकाल में दूध, घी और पाको रसायनों का अधिक सेवन करें |
सामान्य घी, गुड, तिल, मूंगफली, हलवा, सुखड़ी, उड़द-पाक आदि खाएं |
आवले, बेर, गन्ना, गाजर, टमाटर, बैंगन, मुंगरी, पालक की भाजी और फल खाने चाहिए |
इनका सेवन करने से शरीर हृष्ट-पुष्ट एवं ताजगीपूर्ण बनेगा |
चाहिए |
ऐसा करने से ऋतु की ठंडी गर्मी या अन्य असर सहन करने और उनका प्रतिकार करने की शारीरिक शक्ति बनी रहेगी |
ठंडी की ऋतु में जठराग्नि प्रदीप्त होती है अतः आहार के रूप में मधुर तथा स्निग्ध पदार्थों का सेवन करना
चाहिए |
शक्ति का संचार करने हेतु शीतकाल में दूध, घी और पाको रसायनों का अधिक सेवन करें |
सामान्य घी, गुड, तिल, मूंगफली, हलवा, सुखड़ी, उड़द-पाक आदि खाएं |
आवले, बेर, गन्ना, गाजर, टमाटर, बैंगन, मुंगरी, पालक की भाजी और फल खाने चाहिए |
इनका सेवन करने से शरीर हृष्ट-पुष्ट एवं ताजगीपूर्ण बनेगा |