कहानी सच्ची भक्ति

भक्ति का अर्थ

दोस्तों,

बहुत से लोग यह प्रश्न पूछते की हैं मैं तो पिछले 10 सालों से भगवान की पूजा कर रहा हूं भगवान है कि मेरी सुनते ही नहीं ? मेरी भक्ति में क्या कमी रह गई ? क्या में सच्चा भक्त नहीं हूँ ?

ऐसे ही कई लोगों को लगता है कि भक्ति करना तो समय की बर्बादी है | अगर किसी के पास भक्ति करने के लिए समय ही ना हो तो भी क्या वह कुछ कर सकता है?

बहुत से लोगो को अपनी आजीविका चलाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है उनके पास पूजा पाठ करने का समय ही नहीं होता और बहुत से लोग व्यस्त होते हैं जैसे किसी देश के प्रेसिडेंट या प्रधानमंत्री या कोई साइंटिस्ट इत्यादि |

कई बार लोग समय ना होने के कारण भी वह कहने लगते हैं कि पूजा-पाठ तो सब व्यर्थ है |

इनमे से किस बात में कितनी सच्चाई है और क्या पूजा पाठ करना ही सबकुछ है ? आखिर ये सच्ची भक्ति है ?

तो आज हम इसी प्रश्न का उत्तर जानेंगे एक प्राचीन कहानी और गीता ज्ञान की मदद से |

कहानी सच्ची भक्ति

एक नगर में एक राजा था | राजा सुबह-सुबह परमात्मा का नाम लेता और फिर सारा दिन अपना कार्य सुचारु रूप से करता था | राजा के ऊपर नगर के सभी लोगों का दायित्व था |

राजा के राज्य में जो भी विकलांग थे, जरूरतमंद थे, राजा अपनी तरफ से उनकी मदद करता था | सारी जनता इस कारण भी राजा से बहुत खुश थी क्योंकि राजा अपनी नगरी के लोगों की भलाई के लिए कार्य करता था |

एक दिन राजा सुबह-सुबह मंदिर में भगवान से प्रार्थना करके अपने महल की तरफ वापस जा रहा था कि राजा को एक देवदूत के दर्शन हुए | राजा ने शीश झुकाकर देवदूत को प्रणाम किया |

कहानी सच्ची भक्ति

देवदूत के हाथ में एक बहुत बड़ी किताब थी | इस किताब पर नजर पड़ने पर राजा ने देवदूत से पूछा ” देव जी, आपके पास जो किताब है वह क्या है?”

देवदूत बोले ” यही हमारा हिसाब किताब है | इसमें उन व्यक्तियों के नाम है जो हर समय भगवान का सिमरन करते रहते हैं |”

राजा को जानने की उत्सुकता हुई कि राजा का खुद का नाम कितने नंबर पर है | राजा ने देवदूत से कहा है ” देव जी, कृपया करके बताएं मेरा नाम आखिर कितने नंबर पर है |”

देवदूत ने चंद मिनटों में किताब के सारे पन्ने पढ़ डालें | उसमे और कई नाम थे परंतु राजा का नाम कहीं ना था |

यह जान कर राजा का मुख थोड़ा उतर गया तो देवदूत ने राजा से कहा “राजन में दुबारा से देखता हूं, हमारे हिसाब किताब में आपका नाम तो होगा ही |”

तो राजा ने कहा ” नहीं देव आप से कोई भी चूक नहीं हुई है | मेरे को कहां इतना समय मिलता है कि मैं सभी लोगों की तरह भगवान का सिमरन कर सकूं | आपको मेरा नाम आपके हिसाब किताब में नहीं मिलेगा |”

राजा के मन में थोड़ा सा मलाल रहा परंतु राजा ने इस बात से अपना ध्यान हटा लिया और देवदूत को हाथ जोड़कर आगे चल पड़ा और पहले की तरह जनता की सेवा करने और उनकी समस्याओ को सुलझाने में व्यस्त हो गया |

इस घटना को कुछ ही महीने बीते थे कि एक सुबह राजा का सामना फिर देवदूत से हुआ | इस बार देवदूत के हाथ में एक और पुस्तक थी | इस पुस्तक का आकार पहली वाली पुस्तक से काफी छोटा था |

राजा ने देवदूत को इस बार भी सर झुका के प्रणाम किया और फिर देवदूत से वही प्रश्न किया ” प्रभु इस बार जो आपके हाथ में पुस्तक है उसमें क्या है?”

देवदूत ने कहा ” इसमें उन लोगों का हिसाब किताब है जो लोग स्वयं भगवान को बहुत अधिक प्रिय है |”

राजा ने मन ही मन सोचा कितने खुश किस्मत होंगे वह लोग जिनको स्वयं भगवान पसंद करते हैं | जरूर यह लोग भगवान का नाम दिन-रात लेते होंगे |

राजा ने उत्साहित होकर पूछा ” क्या मेरी खुद की नगरी में भी कोई ऐसा व्यक्ति है जिसका नाम इस पुस्तक में लिखा हो ?”

देवदूत ने पुस्तक को खोला और जो पहले पृष्ठ पर पहला नाम लिखा था वह था राजा का |

राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ | राजा ने देवदूत से पूछा ” भला मेरा नाम उन लोगों में पहले स्थान पर कैसे जो भगवान को सबसे अधिक प्रिय है ?”

” मैं तो भगवान का नाम भी दिन में कुछ क्षण के लिए ही ले पाता हूं |”

अब देवदूत ने बताना शुरू किया और कहा “हे राजन, आप अपना कम समय भगवान को याद करने में लगाते हैं परंतु अपने कार्य केवल अपने लिए ना करके जनता के लिए ही वह समय लगाते हैं | आपने जो किया, जो खाया, जो दान किया, जो किया, वह सब करते हुए यही भावना रखी की वो सब आप परमात्मा के लिए ही कर रहे हैं | आपने सभी कार्यों को भगवान का कार्य समझा और सभी कार्यों के फल को भी भगवान को ही अर्पित किया | यही सच्ची भक्ति है और इसलिए ही आप भगवान को सबसे अधिक प्रिय है। “

गीता ज्ञान

दोस्तों, यही सीख हमें श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता के 9 अध्याय 27 और 28वे श्लोक में दी है | इसी तरह अगर किसी व्यक्ति का ध्यान केवल इस बात पर है उसने रोज कुछ घंटो तक भगवान की पूजा करनी ही है और उसका ध्यान भगवान में है ही नहीं, तो ऐसे व्यक्ति को ढोंगी ही जाना चाहिए |

हम जो भी कर रहे हैं उसको भी भगवान को अर्पित करके भक्ति कर सकते हैं और जन कल्याण के कार्य करना भी भक्ति का ही हिस्सा है | जितनी देर भगवान का नाम लो मन से लो, यही सच्ची भक्ति है | हरे कृष्णा |

स्वामी विवेकानंद के जीवन का प्रसंग …..OSHO

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