क्या काम करते रहने से ही शरीर में शक्ति का संचार होता है ?

जीवन में परिश्रम और विश्राम दोनों साथ-साथ चलने चाहिए तभी सुख शांति प्राप्त हो सकती है | मगर कुछ लोगों का विचार है कि काम करते रहने से ही शरीर में शक्ति का संचार होता है | यह उन लोगों कि बड़ी भारी भूल है | ऐसे लोगों को क्या यह भी बताना पड़ेगा कि काम करने में शक्ति का व्यय ही होता है | संचय या संचार नहीं | 

सच बात तो यह है कि जीवन धारण के लिए जितनी आवश्यकता वायु, जल, भोजन की है ,  विश्राम की आवश्यकता शरीरिक संरक्षण के लिए उनसे किसी भी हालत में कम नहीं है |

यूरोप, अमेरिका आदि देश आज भारत से प्रत्येक क्षेत्र में बढे हुए हैं |  इसके अनेक कारणों में से एक कारण यह भी है कि उन देशो के निवासी सच्चे अर्थ में परिश्रम के बाद विश्राम करना जानते हैं | 

वहां क्या वृद्ध, क्या युवक, क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या धनी और क्या निर्धन, सबने अपने दैनिक कार्यो के लिए समय निर्धारित कर रखा है अर्थात 24 घंटो में 8 घंटा काम करने के लिए और 8 घंटा आराम करने के लिए | वे इस नियम का बड़ी कढ़ाई और इमानदारी से पालन कर रहे हैं जिसका परिणाम जो कुछ भी हो वह संसार के सामने हैं | 

गत महायुद्ध के समय दुश्मन के बमों की बोछार की छांव में भी लन्दन महानगरी के सभी विश्राम स्थल-हाइड पार्क आदि चालू रहे और उनमें हजारों की संख्या में अथक परिश्रम नर-नारी विश्राम के लिए भरे रहते थे | 

इतिहास के जानकारों से यह बात छिपी नहीं है कि वाटर लू के घमासान युद्ध के चन्द ही मिनट पहले महावी

र नेपोलियन पर विजय प्राप्त करने वाला Duke of Wellington घोर परिश्रम के बाद विश्राम कर रहा था | 

मानसिक व शारीरिक कोई काम हो सर्वप्रथम मन से उस काम के करने के लिए प्रवृत्ति होती है | तत्पश्चात मस्तिष्क में विचार उठता है विचार से चेतना की उत्पत्ति होती है जिससे उस काम के करने वाले अंग एवं अवयव में एक प्रकार की उत्तेजना रूपी तरंग का प्रादुर्भाव होता है और  स्नाइयू द्वारा प्राण अथवा शरीर की जीवनी शक्ति मस्तिष्क से तुरंत वहां पहुंचकर उस अंग या अवयव विशेष को गति देती है और हम उस काम को करना आरंभ कर देते हैं | इसी प्रकार मनुष्य कासारा कार्य होता है | 

अब यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यदि शारीरिक स्नायु मंडल में परिश्रम द्वारा जीवन शक्ति को केवल व्यय ही करना पड़े और विश्राम द्वारा उस व्यय कि हुई जीवन शक्ति को पुनः प्राप्त करने का मौका न दिया जाए तो शरीर इस अत्याचार को कितने दिनों तक सहन करता रहेगा | निश्चय ऐसी दशा में उसका एक न एक दिन विनाश होना अनिवार्य है |

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