जादुई नारियल और लकड़हारा
एक जंगल में एक ऋषि तपस्या किया करता थी | उस जंगल से सफर करने वाले राहगीर श्रद्धा से उनके पैरों पर फल रख कर चले जाते थे | ऋषि कभी आंखें खोल कर देखता, सामने उन्हें फल दिखाई पड़ते तो वे उन्हें खा लेते थे अन्यथा जंगल के जानवर उन फलों को खा जाते थे | यह क्रम बराबर चलता रहा | कई लोगों ने ऋषि को तपस्या करते हुए उसी तरह देखा पर किसी ने उस की कभी कोई सेवा नहीं की बस आते जाते फल चढ़ा जाते थे |
एक दिन एक आदमी नारियल की गठरी लेकर उस रास्ते से गुजरा | ऋषि को देखकर 4 नारियल उसके सामने रख कर चला गया | थोड़ी देर बाद ऋषि ने आंखें खोल कर देखा तो उन्हें नारियल दिखाई दिया | ऋषि उसको तोड़ना चाहता था पर नारियल को खोल सख्त होने के कारण वह टूट नहीं रहे थे कि तभी एक लकड़हारे ने उसके पास आकर अपनी कुल्हाड़ी से एक नारियल तोड़ा और ऋषि के हाथ में दिया | ऋषि ने नारियल का पानी पिया और उसकी गिरी खाने लगा |
तभी लकड़हारे ने एक-दूसरे नारियल को तोड़ना चाहा तो ऋषि ने उसको रोकते हुए कहा:-
“मैं तुम्हारे द्वारा किये गए सेवा भाव से बहुत प्रस्सन हूँ | इस नारियल को उपहार समझ कर ले जाओ और उसे तोड़ते समय तुम जो इच्छा करोगे उसकी पूर्ति होगी |”
लकड़हारा ने ऋषि को प्रणाम किया और अपनी लकड़ियों के गठ्ठर, कुल्हाड़ी के साथ मुनि के द्वारा दिए तीनो नारियल लेकर अपने घर पहुंचा |
लकड़हारे का नाम पप्पू था | लकड़ियों को बेचने पर जो कुछ भी आमदनी होती थी, उसमें से आधा खाने के लिए खर्च करता, चौथा हिस्सा दान करता, एक चौथाई हिस्सा बचा लेता था | उसने यह प्रतिज्ञा की थी उसके पास चाहे जितने भी रुपए जमा हो जाए पर लकड़ी का धंधा करना बंद नहीं करेगा | जिस दिन उसे कम आमदनी होती उस दिन वह यह सोच कर दुखी होता कि आज दान की रकम कम रह गई | मगर अपने खर्च का हिस्सा कम हो जाने कि उसे चिंता ना होती है |
पप्पू ने घर पहुंच कर यह इच्छा करते हुए एक नारियल तोड़ा:-
“मेरी प्रतिज्ञा का भी भला हो और मेरी पत्नी व बच्चे आराम से रहे” |
बस फिर क्या था उस दिन के बाद से उसका लकड़ी का व्यापार बढ़ता गया | धीरे-धीरे उसने मकान बनवा लिया | पहले से भी ज्यादा दान करते हुए अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आराम से दिन काटने लगा |
अब सब लोग उसे पप्पू जी कहने लगे | पप्पू के घर के पास एक सेठ का घर था | उसकी समझ में यह बात नहीं आई कि पप्पू कैसे एकदम से इतना अमीर हो गया और उससे भी बढ़कर दान करता है और यश पाता है |
उसके मन में पप्पू के प्रति ईर्ष्या पैदा हुई और उसकी हालत पर उसे आश्चर्य भी हुआ |
एक दिन सेठ ने पप्पू से पूछा:- ” पप्पू जी, आप दिन पर दिन तरक्की करते जा रहे हो | मुझे बहुत खुशी हो रही है | यदि आप बुरा ना माने तो मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं, क्या आप को जंगल में कोई खजाना मिल गया है |”
पप्पू बोला:- “नहीं साहब ऐसी कोई बात नहीं है यह सब एक ऋषि की कृपा है ” कहते हुए भोले भाले पप्पू ने सेठ को सारी बातें बता दी |
“तब तो आपके पास दो और नारियल होंगे | कितने भाग्यशाली हैं आप मैं उन्हें देखना चाहता हूं ” सेठ ने पप्पू से कहा |
दूसरे दिन सेठ एक साधारण नारियल अपनी धोती में छिपाकर पप्पू के घर आ गया | उसने पप्पू के नारियल की बड़ी देर तक जांच की और मौका मिलते हैं पप्पू की आंख बचाकर उनमें से एक नारियल अपने नारियल से बदल दिया और फिर अपने घर चला आया |
घर पहुंचकर सेठ ज्यादा धन पाने की इच्छा करके उस महिमा वाले नारियल को तोड़ना ही चाहता था कि इतने में उसकी पत्नी आकर बोली:- ” अजी नारियल का पानी लोटे में डाल दीजिए “|
सेठ को अपनी पत्नी को देखते ही दरिद्र कहने की आदत थी | आदत के मुताबिक उसने ” मैं बहुत धनवान हो जाऊं ” कहने की बजाय ” मैं बहुत दरिद्र हो जाऊं ” कहकर नारियल तोड़ दिया |
इसके बाद सेठ ने अपनी गलती समझी तो अपनी पत्नी को खूब कोसा | लेकिन भूल हो चुकी थी | इस वजह से सेठ की संपत्ति धीरे-धीरे खत्म होती गई | एक दिन लुटेरो ने उसके घर को लूट लिया | उसकी ऐसी हालत हो गई कि पप्पू ने उसे काफी धन दान में दिया |
सेठ ने पप्पू के सामने अपना अपराध स्वीकार किया | इस पर पप्पू ने दूसरा नारियल सेठ को दे दिया | उस नारियल को तोड़कर वह दुबारा अमीर बन गया | सेठ पप्पू के सामने हमेशा के लिए नतमस्तक हो गया |
स्वामी विवेकानंद के जीवन का प्रसंग …..OSHO
अच्छी अच्छी कहानियां
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